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हक के लिए सरकार को उंगली दिखाकर, सवाल पूछना भी लोकतंत्र है: राम सिंह भंडारी
गुडग़ांव। 
भारत में आम चुनाव: 
मतदान के बाद उंगली में, स्याही लगाकर,
खुश होना ही लोकतंत्र नहीं है।
हक के लिए सरकार को उंगली दिखाकर,
सवाल पूछना भी लोकतंत्र है।

गणतंत्र, लोकतंत्र या प्रजातंत्र को जिस नाम से भी पुकारें शासन की वह व्यवस्था है जिसमें जनता के लिए जनता द्वारा जनता की सरकार होती है। हालांकि वर्तमान में अमेरिका को विश्व का सबसे पुराना गणतंत्र कहा जाता है जिसका इतिहास लगभग 230 साल पुराना है। परन्तु यदि इतिहास की अधिक गहराई में जायें तो विश्व का पहला गणतंत्र आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भारत में वैशाली का गणराज्य था। वैशाली वर्तमान में बिहार में स्थित है। 
लोकतंत्र में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है तथा सरकार चुनने की इस प्रक्रिया व प्रणाली को ही चुनाव कहा जाता है। भारत में लगभग हर वर्ष ही कोई न कोई चुनाव होते रहते हैं परन्तु पांच वर्ष में एक बार होने वाला लोकसभा का आम चुनाव भारतीय जनतंत्र का महाकुंभ है। जिसमें करोड़ों भारतीय नागरिक संविधान द्वारा प्रदत्त वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करते हैं। 
2024 दुनिया में एक तरह से चुनाव का वर्ष भी कह सकते हैं। लगभग 60 ज्यादा देशों में इस साल चुनाव हो रहे हैं जिसमें दुनिया की लगभग आधी आबादी (49त्न) के लोग चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे। इस साल जिन देशों में चुनाव हो रहे हैं उनमें अमेरिका, रूस, ताइवान पुर्तगाल, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, ईरान, श्री लंका, यूके, द.कोरिया, ई.यू., बांग्लादेश व भारत प्रमुख हैं। परन्तु पूरी दुनिया की नजर दो देशों पर प्रमुख रूप से है जिसमें भारत व अमेरिका। एक विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र है तो दूसरा सबसे पुराना गणतंत्र तथा आर्थिक व सैन्य ताकत में सबसे शक्तिशाली देश है। 
भारत में तो सबकी नजर आने वाले लोकसभा चुनावों पर टिकी हुई है। अगले दो महीनों के भीतर ही भारत में आम चुनावों की तारीखों की घोषणा होते ही विश्व के सबसे बड़े महाकुंभ का शंखनाद हो जायेगा। तब गणतंत्र के महाकुंभ के उस जनसैलाब में करोड़ों लोग
अपने जनतांत्रिक अधिकारों के प्रयोग हेतु उमड़ पड़ेगें। भारत में 1950 से गणतंत्र की स्थापना के बाद 1951-52 में पहली लोक सभा के चुनावों के बाद इस साल 2024 में 18वीं लोक सभा के लिए चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई हैं। ये चुनाव कई मायनों में अहम व दिलचस्प होने वाले हैं। आम चुनावों में मतदाताओं को लुभाने व वोट पाने के लिए राजनीतिक दलों व नेताओं द्वारा लुभावने नारे दिये जाते हैं। सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक मुद्दों आदि पर बहस होती है। जिनके इर्द गिर्द ही चुनाव लड़ें जाते रहे हैं। 
पहले आम चुनाव का कोई विशेष नारा नहीं था क्योंकि वह भारत का पहला आम चुनाव था। 1967 में चौथा आम चुनाव जो कि चीन व पाकिस्तान से युद्ध के बाद हुए थे। भारत की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तथा देश में अन्न की भारी कमी थी। तब उस समय का नारा था ‘जय जवान, जय किसान।’ जो कि प्रभावित रहा तथा कांग्रेस पार्टी की जीत हुई। 1971 का आम चुनाव एक ऐतिहासिक चुनाव था। कांग्रेस के दो गुट होने के बाद भी इंदिरा गांधी का ‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने उनको सत्ता के शिखर पर पहुंचा दिया तथा अगले 15 वर्षों तक देश प्रधानमंत्री के रूप में शक्तिशाली नेता बनी रहीं थीं। 1977 का आम चुनाव देश में  इमरजेंसी के बाद हुआ था। उस समय का विपक्षी दलों का मुख्य नारा एक ही था ‘इंदिरा हटाओ देश बचाओ’। जो इतना कारगर हुआ की जनता पार्टी की आंधी में कांग्रेस साफ हो गयी यहां तक कि इंदिरा गांधी भी अपनी सीट हार गयी।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद फिर से आम चुनाव हुए। ये चुनाव इंदिरा गांधी की शहादत के बाद सहानुभूति की लहर में हुए। इन चुनावों का मुख्य नारा था, इंदिरा तेरी यह कुर्बानी, याद करेगा हिन्दुस्तानी।’ इस लहर में कांग्रेस ने लोकसभा में 400 से ज्यादा सीट जीतकर इतिहास बना दिया। 1998 का चुनाव में फिर गैर कांग्रेसी दलों के जीत का चुनाव व भाजपा के उदय का चुनाव था। चुनाव का नारा ‘अबकी बारी, अटल बिहारी’ इतना लोकप्रिय हुआ कि भाजपा केन्द्र की सत्ता में आ गयी। हालांकि वह पूरा पांच वर्ष कार्यकाल पूरा नहीं पाई थी।
2004 में भाजपा भारत उदय के नारे के साथ चुनाव में उतरी परन्तु कांग्रेस का नारा, ‘काग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ वाला भारी पड़ा तथा कांग्रेस फिर से 10 साल बाद सत्ता में लौट आयी तथा अगले 10 वर्ष तक यूपीए के गठबंधन के रूप सत्ता में बनी रहीं। 2014 का चुनाव में भाजपा नयी चुनौती व नेतृत्व के साथ, ‘अबकी बार मोदी सरकार’ के नारे के साथ यूपीए के भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाकर सत्ता में काबिज हो गयी। 2019 में बेशक कांग्रेस ने चौकीदार चोर है व अब होगा न्याय के नारे से भाजपा को घेरना चाहा परन्तु भाजपा का नारा,  मोदी है तो मुमकिन है व अबकी बार फिर मोदी सरकार तथा सबका साथ, सबका विकास’ की गूंज से दुबारा सत्ता में आकर एक इतिहास बनाया। 
अब बारी है 2024 के चुनावों की। जो कई मायनों में दिलचस्प होने जा रहा है। जहां भाजपा, मोदी की गारंटी व ‘अबकी बार 400 पार’ के साथ ही राम मंदिर निर्माण व धारा 370 के उन्मूलन के दावे से आगे बढ़ रही है। भाजपा गणतंत्र के 75वें साल में 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने व दुनिया की तीसरी आर्थिक शक्ति बनाने का संकल्प लेकर चुनावों में जा रही है। तो वहीं कांग्रेस व विपक्षी पार्टियां चरमराते व बिखरते आईएनडीआईए गठबंधन के साथ ‘जीतेगा इंडिया जुड़ेगा भारत’ के नारे व वादे के साथ भाजपा के रथ को थामने की कोशिश कर रहे हैं। 
अब यह जनता तय करेगी कि क्या वह फिर से तीसरी बार भाजपा गंठबंधन को सत्ता में लायेगी या विपक्षी गठबंधन पर विश्वास करेगी। सच में आने वाला लोक सभा का चुनाव दिलचस्प होने वाले हैं जिसकी बानगी अभी से दिखने लगी है। 
---------राम सिंह भंडारी, गुरुग्राम-----------
 

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